Hi friends, Blogging is fun now, it makes me feel good about myself, so here I am again. Today I am trying something really different, as legend said a good writer is one who can write anything so I tried to show a little versatility here. Though I don't want to become a professional (I can't actually), I write for fun, it's fun for me and I hope it is fun for the readers too. So here is a poem and that too in Hindi (Sorry for the grammatical errors I made there as this is my first time), hope you guys will like it.
आज सुबह जो खिडकी से बाहर झाँक के देखा तो,
पडोस के घर मे आयी नयी पडोसन की बेटी रेखा को,
अपने कोमल हाथों से कर रही थी अपने बालों को Brush,
बस इक ही झलक मे बन गयी थी वो मेरा पहला Crush,
उनके दिदार जो हुए तो दिल से आह निकली, आखोँ से वाह निकली,
कुछ और भी कहीं से निकला था, शायद उदर से जहरीली हवा निकली,
Early morning coffee ने शायद कर दिया था शुरू अपना असर,
बेचैन अपने दिल को समझाके जा बैठा मैं अपनी toilet seat पर,
Hot seat पे बैठते ही चँचल मन मेरा कळपनाओं की उडान भरने लगा,
खयालों में ही सही मै रेखा जी से जी भर के romance करने लगा,
सपना तब टुटा जब पेट में कुछ तहलका सा महसुस हुआ,
थोडी सी कशमकश के बाद बडा हळका सा महसुस हुआ,
खुराफाती भेजे मे बस एक ही सवाल था कि कैसे उसे पटाऊँ,
किस Topic पर बात करूँ कैसे अपना Impression जमाऊँ,
फिर सोचा कि कयुं ना उनहे इक Love Letter लिख डालुं,
Internet से चुरायी गजलोँ के दम पे ही उनसे हाँ भरवालुं,
उसे निकलता देख मैं भी नहा धो के अपने कायॆलय के लिये निकला,
आगे आगे हिरनी की तरह चल रही थी वो तभी उसका पाँव फिसला,
मैं Hollywood के Hero की तरह लपका और उसे अपनी बाहों मे थाम लिया था,
वो तो Bike के Horn ने जगाया और पता चला की मैं तो सपना देख रिया था,
सपना जो टुटा तो देखा की वो किसी Handsome नौजवान के साथ निकल चुकी थी काफी दुर,
मैं अभागा ताकता ही रह गया, जाते जाते कर गयी वो मेरे दिल को चकनाचुर,
शाम को लौटा तो माँ ने बताया कि रेखा जी तो हैं शादीशुदा,
और बस युं ही दो Love Birds मिलने से पहले ही हो गये जुदा,
मन बडा उदास था, जैसे एन.डि.तिवारी का अधेड उम़ मे बाप बनने से हुआ था,
मैं गहरे कुंअे मे गिरे लोटे सा, और ये जालिम जगत जैसे कोइ गहरा कुंआ था,
चेहरे की रंगत उतर गयी जैसे मनमोहन की उतरती है सोनिया के डाँटने के बाद,
लिख रहा हुं ये सब इसिलिये कि शायद दिल का बोझ उतर जाये बाँटने के बाद,
पँचम दा की मधुर धुन मे, इसी उधेडबुन मे, मैं चादर ओढ़ के सो गया था,
नींद ना आयी रात भर, करवटें बदलते बदलते ही उजाला हो गया था,
फिर खिडकी से बाहर झाँक के देखा तो पडोसन की छोटी बेटी मीना जुळफें संवार रही थी,
अंतरमन का ठरकी फिर से जागा, फिर से दिल कि गंगा जोरों से उछालें मार रही थी,
मेरे दिल के तार झंक़त हो उठे, मन मयुर नाच उठा,
पृभु कामदेव को याद कर, खुद को निहारा मैने काच उठा,
सोचा बाल कम हैं तो कया, यही तो आजकल का Fashion है,
इस Trend को वो ना समझी तो कह देंगे भैया Recession है,
इन प़ेममयी विचारों को लिये हमने फिर खिडकी से बाहर नजर दौडायी,
वो ना जाने कहाँ छुप गयी थी, नजर आया उसका पहलवान भाई,
मन मे भय एैसा जागा, जैसे राहुल बाबा को देख किसी गरिब दलित में जागता है,
मैं उठ के एैसा भागा, जैसे Tom को देख कर के Jerry भागता है!!
Thank you for reading. Do tell your views about this post. :)
Sunday, August 5, 2012
पडोसन की बेटी
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